
पंजाब इस समय भीषण बाढ़ से जूझ रहा है। राज्य के दस ज़िले—पठानकोट, गुरदासपुर, होशियारपुर, कपूरथला, जालंधर, फिरोजपुर, फाजिल्का, अमृतसर, तरनतारन और मोगा—काफ़ी तबाही मचा रहे हैं।
बांधों को पानी के दबाव को संभालने में मुश्किलें
बांधों को पहाड़ों से आने वाले पानी के निरंतर प्रवाह को नियंत्रित करने में कठिनाई हो रही है।
इस मानसून में नदियाँ और जलधाराएँ अपनी क्षमता से अधिक भर गईं, जिससे बांधों को रिकॉर्ड मात्रा में पानी छोड़ना पड़ा।
परिणामस्वरूप, राज्य के एक हजार से अधिक गांव बाढ़ की चपेट में हैं और तीन लाख एकड़ से अधिक कृषि भूमि प्रभावित हुई है।
पंजाब की तीन प्रमुख नदियाँ—सतलुज, ब्यास और रावी—इस साल अपनी क्षमता से कहीं ज़्यादा पानी लेकर उफान पर हैं।

पंजाब की तीन प्रमुख नदियां सतलुज, ब्यास और रावी इस साल अपनी क्षमता से अधिक पानी से लबालब हैं। सतलुज नदी की अधिकतम क्षमता 2 लाख क्यूसेक है, लेकिन इस साल जलस्तर 2.60 लाख क्यूसेक तक पहुंच गया।
ब्यास नदी की क्षमता 80 हजार क्यूसेक है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा पानी छोड़ा गया। इस साल रावी नदी में 14.11 लाख क्यूसेक पानी दर्ज किया गया, जो 1988 के बाढ़ स्तर से भी ज्यादा है।
बांधों पर दबाव बढ़ा भाखड़ा बांध (सतलुज पर) का जलस्तर 1672 फीट तक पहुंच गया, जबकि खतरे का निशान 1680 फीट है। पौंग बांध (ब्यास पर) की क्षमता 1400 फीट है, हालांकि, इस बार जलस्तर 1393 फीट तक पहुंच गया रणजीत सागर बांध (रावी पर) की जलस्तर सीमा 1370 फीट है, लेकिन इस वर्ष जलस्तर 1729 फीट तक पहुंच गया। बाँध से 2.15 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया, जिससे पठानकोट ज़िले में भारी नुकसान हुआ।
गाद और अतिक्रमण से बढ़ा पंजाब में बाढ़ का संकट, विशेषज्ञों ने दिए समाधान के सुझाव
गाद और अतिक्रमण ने संकट को बढ़ाया विशेषज्ञों का कहना है कि कई वर्षों से नदियों और नालों से गाद न हटाए जाने के कारण जल प्रवाह बाधित हुआ और बाढ़ बढ़ी।
इसके अलावा, नदी तटों पर अतिक्रमण ने बाढ़ को और भी विकराल बना दिया। विशेषज्ञों के विचार पूर्व विशेष मुख्य सचिव केबीएस सिद्धू ने कहा कि मानसून से पहले और बाद में नदियों और नालों का निरीक्षण किया जाना चाहिए।
गाद बांधों के बार-बार टूटने से नुकसान बढ़ता है, इसलिए उनकी मरम्मत और मजबूती पर ध्यान देना जरूरी है। पंजाब विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर एएन सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन, घटते वन क्षेत्र और बादल फटने जैसी घटनाएं बाढ़ की चुनौती को बढ़ा रही हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि ब्यास, सतलुज और रावी नदियों का विस्तृत सर्वेक्षण होना चाहिए। बाढ़ संभावित क्षेत्रों में तुरंत एहतियाती कदम उठाए जाएं। मौजूदा हालात 1988 की ऐतिहासिक बाढ़ से भी गंभीर बताए जा रहे हैं। सरकार ने सेना और एनडीआरएफ की मदद से बचाव अभियान शुरू किया है। हज़ारों लोगों को सुरक्षित इलाकों में पहुँचाया गया है। प्रभावित परिवारों तक राहत सामग्री भी पहुँचाई जा रही है।