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सुप्रीम कोर्ट ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सोशल मीडिया पर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर की गई टिप्पणी के मामले में अंतरिम जमानत दे दी है। कोर्ट ने साफ किया कि मामले की जांच पर रोक नहीं लगेगी और साथ ही हरियाणा सरकार को 24 घंटे के भीतर एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का निर्देश दिया है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लेकिन समय पर सवाल
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोतिश्वर सिंह की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी को है, लेकिन सवाल यह है कि ऐसे संवेदनशील समय में इस तरह की टिप्पणी करने की आवश्यकता क्यों पड़ी?” कोर्ट ने कहा कि देश संकट के दौर से गुजर रहा है, और ऐसे समय में “सस्ती लोकप्रियता” बटोरने का प्रयास नहीं होना चाहिए।
कपिल सिब्बल ने पेश की दलीलें
प्रोफेसर महमूदाबाद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत में पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर की ट्विटर पोस्ट को गलत समझा गया है और उसमें किसी भी तरह की आपत्तिजनक बात नहीं थी। सिब्बल ने कोर्ट को पोस्ट पढ़कर सुनाते हुए कहा कि यह देशभक्ति से ओतप्रोत है और मीडिया व युद्ध की मांग कर रहे बिना सोच-विचार वाले लोगों की आलोचना है।
SIT गठित करने का आदेश
कोर्ट ने हरियाणा पुलिस महानिदेशक (DGP) को तीन सदस्यीय SIT गठित करने का निर्देश दिया है, जिसमें एक महिला IPS अधिकारी राज्य के बाहर से होंगी। साथ ही प्रोफेसर को जांच में पूर्ण सहयोग करने और पासपोर्ट जमा कराने का आदेश दिया गया है।
क्या है मामला?
प्रोफेसर महमूदाबाद को 18 मई को गिरफ्तार किया गया था। उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कई कठोर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिनमें शामिल हैं:
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धारा 152 – भारत की संप्रभुता व अखंडता को खतरे में डालना
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धारा 196(1) – धर्म के आधार पर द्वेष फैलाना
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धारा 197 – राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध आरोप
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धारा 299 – धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना
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धारा 79 – महिला की मर्यादा का अपमान
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धारा 353 – लोक शांति भंग करने वाले बयान